पद्म विभूषण-भारत का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार

संक्षिप्त जानकारी/Brief Info

पदम विभूषण, भारत रत्न के बाद भारत गणराज्य का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार है। इसकी स्थापना 2 जनवरी 1954 को की गई थी। यह पुरस्कार असाधारण और विशिष्ट सेवा के लिए दिया जाता हैं। इस पुरस्कार को देते समय जाति, व्यवसाय, पद या लिंग आदि किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता है लेकिन डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को छोड़कर अन्य कोई भी सरकारी कर्मचारी इन पुरस्कारों के लिए पात्र नहीं है। 2022 तक इस पुरस्कार से 325 व्यक्तियों को सम्मानित किया जा चुका है जिनमें से 19 को मरणोपरांत यह पुरस्कार मिला।

हर वर्ष 1 मई से 15 सितंबर के दौरान पदम पुरस्कार समिति को पुरस्कार के लिए सिफारिशे प्रस्तुत की जाती है। सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारें, भारत सरकार के मंत्रालय, भारत रतन और पिछले पद्म विभूषण पुरस्कार प्राप्त करताओ, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और राज्य के राज्यपाल से सिफारिशे प्राप्त होती है। समिति बाद में आगे की मंजूरी के लिए प्रधानमंत्री और भारत के राष्ट्रपति को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करती है। पुरस्कार प्राप्त करताओ की घोषणा हर वर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर की जाती है।

सबसे हालिया पद्म विभूषण 4 व्यक्तियो को दिया गया जिनमें दो को मरणोपरांत इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया।किराना घराने की प्रसिद्ध हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिका प्रभा अत्रे को कला में उनके योगदान के लिए पुरस्कार मिला। गीता प्रेस के अध्यक्ष राधेश्याम खेमका को साहित्य और शिक्षा में उनके योगदान के लिए पुरस्कार मिला। जनरल बिपिन रावत, पूर्व सेनाध्यक्ष एवं CDS को सिविल सेवा में उनके योगदान के लिए मरणोपरांत पुरस्कार से सम्मानित किया गया और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को सार्वजनिक मामलों में उनके योगदान के लिए मरणोपरांत पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

इतिहास/History 

2 जनवरी 1954 को भारत के राष्ट्रपति सचिव के कार्यालय से 2 नागरिक पुरस्कारों, भारत रतन तथा पदम विभूषण की घोषणा करते हुए प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई। पदम विभूषण को 3 वर्गों, "पहला वर्ग", "दूसरा वर्ग" और "तीसरा वर्ग" में विभाजित किया गया। 15 जनवरी 1955 को पदम विभूषण को तीन अलग-अलग पुरस्कारों में विभक्त कर दिया गया था: पदम विभूषण, पदम भूषण और पदम श्री। पद्म विभूषण सबसे बड़ा पद्म पुरस्कार है जो "भारत रतन" के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार है।

नागरिक पुरस्कारों को अभी तक दो बार निलंबित किया जा चुका है। पहली बार 1977 में जब मोरारजी देसाई भारत के प्रधानमंत्री थे। इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 25 जनवरी 1980 को पुरस्कारों को फिर से बहाल कर दिया गया। दूसरी बार 1992 में जब भारत के उच्च न्यायालय में दो जनहित याचिकाएं दायर की गई थी जिनमें संविधान के अनुच्छेद 18(1) के अनुसार नागरिक पुरस्कारों को "शीर्षक" होने पर सवाल उठाया गया था। बाद में 15 दिसंबर 1995 को सर्वोच्च न्यायालय की विशेष खंडपीठ ने पुरस्कारों को फिर से बहाल किया और एक निर्णय दिया कि "भारत रत्न और पदम पुरस्कार भारत के संविधान के अनुच्छेद 18 के तहत खिताब नहीं है"।

नियम/Regulations 

पदम विभूषण जाति, व्यवसाय, स्थिति या लिंग आदि किसी के भेदभाव के बिना असाधारण और विशिष्ट सेवा के लिए प्रधान किया जाता है। डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को छोड़कर अन्य सरकारी सेवकों द्वारा प्रदान की गई सेवा के लिए यह पुरस्कार नहीं दिया जा सकता। शुरुआत में पुरस्कार के मरणोपरांत देने की अनुमति नहीं थी लेकिन बाद में जनवरी 1955 में कानून में संशोधन किया गया और पुरस्कार को मरणोपरांत सम्मानित किए जाने को अनुमति मिली। आदित्य नाथ झा, गुलाम मोहम्मद सादिक और विक्रम साराभाई को 1972 में पहली बार मरणोपरांत इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

सिफारिशें सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों, भारत सरकार के मंत्रालयो, भारत रतन और पिछले पदम विभूषण पुरस्कार प्राप्तकर्ताओ, उत्कृष्टता संस्थानो, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और राज्य के राज्यपालो से प्राप्त होती है। हर वर्ष 1 मई से 15 सितंबर के दौरान प्राप्त याचिकाये भारत के प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई "पदम पुरस्कार समिति" को प्रस्तुत की जाती है। पुरस्कार समिति बाद में आगे की मंजूरी के लिए प्रधानमंत्री और भारत के राष्ट्रपति को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करती है।

पद्म विभूषण पुरस्कार प्राप्तकर्ता की घोषणा हर साल भारत के गणतंत्र दिवस पर की जाती है और भारत के राजपत्र में पंजीकृत किया जाता है। राजपत्र, प्रकाशन विभाग शहरी विकास मंत्रालय द्वारा साप्ताहिक रूप से जारी किया जाने वाला एक प्रकाशन है जिसका उपयोग आधिकारिक सरकारी सूचनाओं के लिए किया जाता है राजपत्र में प्रकाशन के बिना पुरस्कार के प्रदान को आधिकारिक नहीं माना जाता। किसी भी व्यक्ति के पुरस्कार को रद्द या बहाल करने के लिए राष्ट्रपति के आदेश की आवश्यकता होती है। यदि किसी व्यक्ति का नाम रजिस्टर से हटा दिया जाता है तो उन्हें अपने पदक वापस करने पड़ते हैं।

पदक/Medal 🥇

1954 के नियमों के अनुसार पदम विभूषण का पुरस्कार 35 मिलीमीटर व्यास में सोने के गिल्ट से बना एक चक्र होता था। पदक के अगले भाग पर केंद्र में कमल का फूल उभरा हुआ था। और कमल के फूल के ऊपर देवनागरी लिपि में "पदम विभूषण" लिखा हुआ था। पदक के दूसरी तरफ अशोक स्तंभ एवं देवनागरी लिपि में "देश सेवा" लिखा हुआ था। पदक को 32 मिलीमीटर चौड़ाई वाले गुलाबी रिबन से लटकाया जाता था। यह रिबन एक सफेद रेखा द्वारा दो भागो में विभाजित था।

1955 में पदक की डिजाइन को फिर से संशोधित किया गया। वर्तमान पदक कांस्य का बना हुआ है जिसका व्यास 44 मिलीमीटर है और यह 3.2 मिलीमीटर मोटा है। पदक के आगे वाले भाग पर कमल का फूल उभरा हुआ है जिसके ऊपर देवनागरी लिपि में "पद्म" एवं नीचे "विभूषण" लिखा हुआ है। पदक के दूसरी तरफ "अशोक स्तंभ" के साथ "सत्यमेव जयते" देवनागरी लिपि में लिखा हुआ है। इस पदक को एक गुलाबी रिबन के साथ पहना जाता है। इसका निर्माण कोलकाता की अलीपुर टकसाल में होता है।

प्राप्तकर्ता/Recipients

2022 तक यह पुरस्कार कुल 325 व्यक्तियों को दिया जा चुका है जिनमें 19 को मरणोपरांत और 21 विदेशियों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया चुका है। पुरस्कार के पहले प्राप्त करता सत्येंद्र नाथ बोस, नंदलाल बोस, जाकिर हुसैन, बालासाहेब गंगाधर खेर, वीके कृष्ण मैनन और जिगमे दोरजी वांगचुक थे जिन्हें 1954 में सम्मानित किया गया था।

पी एन हक्सर, विलायत खान, ईएमएस नंबूद्रीपाद, स्वामी रंगनाथानंद और मानिकोंडा चलपति राव ने पुरस्कार लेने से मना कर दिया। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल तथा बाबा आमटे ने पुरस्कार को वापस लौटा दिया। लक्ष्मीचंद जैन और शरद अंतर राव जोशी के परिवार के सदस्यों ने उनके मरणोपरांत पुरूस्कार को अस्वीकार कर दिया।

नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके आप विकिपीडिया के माध्यम से अभी तक के सभी पद्म विभूषण प्राप्तकर्ताओ के बारे में जान सकते हैं।


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निष्कर्ष/Conclusion 

नमस्कार दोस्तों, आज इस आर्टिकल में हमने भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार अर्थात पदम विभूषण के बारे में जाना। आशा करता हूं की आपको पदम विभूषण से जुड़ी सारी जानकारियां उपलब्ध करा पाया। अपनी राय कमेंट करके जरूर बताएं......धन्यवाद!

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