जय जवान, जय किसान

नमस्कार दोस्तों,
जय जवान जय किसान, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के यह शब्द आज भी हर भारतीय को उत्साह से भर देते हैं। यह वह नारा है जिसने संपूर्ण भारत को भुखमरी तथा पकिस्तान के खिलाफ एक धागे में पिरोह दिया था। तो आइए जानते हैं इस नारे के बारे में-

जय जवान, जय किसान नारे की उत्पत्ति

"जय जवान, जय किसान" भारत के दूसरे प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का एक नारा था, जो 1965 में उरुवा, प्रयागराज में एक सार्वजनिक सभा में बोला गया था।

नेहरू जी की मृत्यु के बाद शास्त्री जी ने भारत के प्रधान मंत्री का पद संभाला। उनके प्रधान मंत्री बनने के तुरंत बाद पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया। उस समय देश में खाने का भी संकट था। शास्त्री जी ने भारत की रक्षा के लिए सैनिकों को उत्साहित करने तथा आयात पर निर्भरता कम करने और खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित किया तथा उनके सम्मान में "जय जवान, जय किसान" का नारा दिया।


सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने शास्त्री जी को उनके 48 वे शहीद दिवस पर कुछ यू याद किया:

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री उन महान भारतीयों में से एक थे जिन्होंने हमारे सामूहिक जीवन पर अमिट छाप छोड़ी है। हमारे सार्वजनिक जीवन में श्री लाल बहादुर शास्त्री का योगदान इस मायने में अद्वितीय था कि वे भारत में आम आदमी के जीवन के सबसे करीब थे। भारतीयों द्वारा श्री लाल बहादुर शास्त्री को अपना माना जाता था, जिन्होंने अपने विचारों, आशाओं और आकांक्षाओं को साझा किया। उनकी उपलब्धियों को एक व्यक्ति की अलग-अलग उपलब्धियों के रूप में नहीं बल्कि सामूहिक रूप से हमारे समाज की उपलब्धियों के रूप में देखा जाता था। उनके नेतृत्व में भारत ने 1965 के पाकिस्तानी हमले का सामना किया और उसका डटकर मुकाबला किया। यह देश के प्रत्येक नागरिक के लिए भी गर्व की बात है। श्री लाल बहादुर शास्त्री का "जय जवान, जय किसान" का नारा आज भी पूरे देश में गूंजता है। इसके पीछे अंतरतम भाव है 'जय हिन्दुस्तान'। 1965 का युद्ध हमारे स्वाभिमान और हमारी राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के लिए लड़ा और जीता गया था। इस तरह के सराहनीय कौशल के साथ हमारे रक्षा बलों का उपयोग करने के लिए, राष्ट्र श्री लाल बहादुर शास्त्री का आभारी है। उन्हें उनकी उदारता और जनसेवा के लिए हमेशा याद किया जाएगा।

"जय जवान, जय किसान" नारे का विस्तार

"जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान"

1998 में पोखरण परीक्षणों के बाद, अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत की प्रगति में ज्ञान के महत्व को रेखांकित करने के लिए "जय विज्ञान" (विज्ञान की जय हो) को नारे में जोड़ा।

"जय जवान,जय किसान,जय विज्ञान और जय अनुसंधान"

जालंधर की लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में 106वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस में 'भविष्य का भारत: विज्ञान और प्रौद्योगिकी' पर बोलते हुए पीएम मोदी ने जय जवान, जय किसान और अटल बिहारी वाजपेयी के जय विज्ञान के प्रसिद्ध नारे में जय अनुसंधान (शोध की जय हो) को जोड़ा। 2022 में लाल किले से भाषण देते समय भी उन्होंने इस नारे को दोहराया था।

"जय जवान,जय किसान,जय विज्ञान,जय विद्वान्"

लाल बहादुर शास्त्री इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (दिल्ली) के निदेशक डॉ कैलाश चंद्र मिश्रा ने 10 वां लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने के बाद 15 दिसंबर 2009 को तीन मूर्ति भवन में दिए गए भाषण के दौरान "जय विद्वान" अर्थात "विद्वानों की जय हो" नारे का उपयोग किया।

इनके अलावा भी इस नारे का कई बार उपयोग किया गया। 2021 के राष्ट्रिय बजट पर कटाक्ष करते हुए कांग्रेस नेता शशि थरूर ने "नो जवान, नो किसान" का प्रयोग किया।

सिनेमा में 

1) 2015 में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के जीवन पर आधारित एक फिल्म आई जिसका नाम "जय जवान,जय किसान" था।

2) विवेक राजन अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित फिल्म "द ताशकंद फाइल्स" शास्त्री जी की मृत्यु के रहस्यों से संबंधित है।

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निष्कर्ष/Conclusion 

नमस्कार दोस्तों, आज इस आर्टिकल में हमने "जय जवान, जय किसान" नारे कि उत्पत्ति से लेकर इसके विस्तार एवं भारत के इतिहास एवं वर्तमान में इसके महत्व को जाना। आशा करता हूं कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा। अपने विचार नीचे कमेंट करके जरूर बताएं.... धन्यवाद।

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